मंगलवार, 2 नवंबर 2010

दिल का बोझ हटाना होगा ..........

दिल का बोझ हटाना होगा |

सब को गले लगाना होगा ||


तोड़ के रिश्ते देख लिया जो |

कीमत वही चुकाना होगा ||


किसने दी है दिल को दस्तक |

कोई जख्म पुराना होगा ||


आओ तोड़ें चाँद सितारे |

बच्चों को बहलाना होगा ||


हर कंधे पर उम्मीदें है |

करके कुछ दिखलाना होगा ||


बातें करना प्यार वफ़ा की |

गुजरा हुआ जमाना होगा ||

सोमवार, 27 सितंबर 2010

हमने छोड़ा शहर ज़माने के लिए.......

अपने ही जख्म छुपाने के लिए |
हमने छोड़ा शहर ज़माने के लिए ||

ये किस राह का में रह गुजर हूँ |
कोई पत्थर नहीं उठाने के लिए ||

भले ही लाखों जख्म खाए लेकिन |
दिल है तैयार लगाने के लिए ||

सभी है अपने में मशरूफ साकी |
तुम भी रूठे हो मानाने के लिए ||

यहाँ तो है सभी कातिल निगाहें |
नजर के तीर चलाने के लिए ||

रविवार, 1 अगस्त 2010

सिलसिला

सिलसिला इश्क यूँ ही चलने दो |
लोग जलते है जलें जलने दो ||

लूट कर ले गए वो ख्वाब सभी |
बातों बातों में रात ढलने दो ||

फिर संभल जाएगी हर बहर अपनी |
उनके होठों की गजल बनने दो ||

दिल का मिलना तो दूजी बात है |
पहले हाथों से हाथ मिलने दो ||

(और यह शेर मैने अपने बड़े भइया परम आदर्णीय "पवन जी" के लिए लिखा है )

बस यही इल्तजा रही उनसे |
अपने पैरों की धूल बनने दो ||

गुरुवार, 24 जून 2010

फासले दरमियाँ................

वो हमें हम उन्हें पास लाते रहे
फासले दरमियाँ फिर भी आते रहे


वो गए छोड़ कर हम को ऐसे कहीं
रास्तों पर शमाँ हम जलाते रहे



कुछ हकीकत से अपना न था वास्ता
गीत ख्वाबों के हम गुन गुनाते रहे


अब तलक अपने दिल में अँधेरा रहा
ज्ञान की लौ सभी को दिखाते रहे

हर लहर के मुकद्दर में साहिल नहीं
हौसले टूट कर मुस्कराते रहे

लाख मंजिल तलाशी मगर हमसफ़र

लोग आते रहे लोग जाते रहे

शुक्रवार, 21 मई 2010

वक़्त की चाल कुछ बदली हुई है..................

वक़्त की चाल कुछ बदली हुई है |

हर तरफ वर्फ सी पिघली हुई है ||


वो क्या हसीं मंजर है सोचो |

अँधेरी रात में चाँदनी पिघली हुई है ||


जरा तू बंद करके देख आँखें |

वही तस्वीर, पर धुंधली हुई है ||


भले ही इश्क से तौबा करली |

तमन्ना आज भी मचली हुई है ||


तुम को पा कर ये जाना |
मेरी किस्मत तो संभली हुई है ||

गुरुवार, 13 मई 2010

रात कटती नहीं...........................

रात कटती नहीं सितारों से

हमें उल्फत रही बहारों से


कभी सीने पे जख्म खाते थे

अब डरता हूँ इन शरारों से


तेरा वजूद तो कुछ भी नहीं

तेरी पहचान है बिचारों से


यही पढता रहा किताबों में

सच भारी है झूठ हजारों से


कभी खुल के जुबां से बोल जरा

बात बनती नहीं इशारों से




मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

कहते कहते....................

कहते कहते बात अपनी कह गए |

हम अकेले थे अकेले रह गये ||


चुपके चुपके आइनों की बात सुन |

सिसकियाँ लेते वो आंसू बह गए ||


यादों की बारात अपने साथ थी |

भीड़ में होकर भी तन्हा रह गये ||


टूटते है कैसे लोग दुनियां में |

ठोकरें खाते किनारे कह गए ||


दिल से दिल मिलना तो गुजरी बात है |

हाथ हाथों से मिलाते रह गए ||

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

जिंदगी यूँ ही........................................

जिंदगी यूँ ही जिए जा रहा हूँ |
आंसू वफ़ा के पिए जरा हूँ ||

हिस्से में अपने राहें पड़ी है |
मंजिल ए जुस्तजू लिए जा रहा हूँ ||

पहचान अपनी खो ही गयी है |
चहरे बदलकर जिए जा रहा हूँ ||

वो टुटा हुआ जाम उठा दे ए साकी |
होश की बातें किए जा रहा हूँ ||

करती शरारत कमबख्त ऑंखें |
इल्जाम दिल को दिए जा रहा हूँ ||

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

राहों से कह दो...........................

कहीं जमीं तो कहीं आसमां देखा है |

किसी भी उम्र में दिल जवां देखा है ||


खींचो खून से सरहद की लकीरें |

दोनों तरफ अमन का कारवां देखा है ||


दिल को दुखा के सुकूँ नहीं मिलता |

छलकती आँखों को पशेमां देखा है ||


कैसा रिश्तों के टूटने का दौर आया है

बेचैन हर घर का बागबां देखा है ||


राहों से कह दो दरारें भरा करें |

खुदा को किस्मत पर महरवा देखा है ||

सोमवार, 29 मार्च 2010

नये ब्लोगर का करें स्वागत ....................पंकज सिंह


नये ब्लोगर का करें स्वागत ....................पंकज सिंह
आज से ब्लॉग जगत में एक और महान हस्ती का पदार्पण हो रहा है
श्री पंकज कुमार सिंह ब्लॉग जगत में ये नाम भले ही नया हो परन्तु
मिडिया के क्षेत्र में ये नाम बहुत जाना पहचाना है और अपना विशिष्ट स्थान रखता है
मीडिया के क्षेत्र से श्री सिंह 1993 से कार्य रत है और सम्पादकीय लिखते रहे है
पत्र पत्रिकाओं में कहानियां एवं अन्य स्तम्भ लिखे है
पंकज जी खेलों के मर्मज्ञ है और खेल प्रष्ठ पर इनके
लेख प्रकाशित होते रहे है पंकज जी मैनुरी जिले के निवासी है और बहुमुखी प्रतिभा
के धनी है और इस समय सिविल सेवा में कार्यरत है
आज बहुत खुशी का दिन है क्योंकि कि हमारे ब्लॉग जगत में एक और बेहतरीन लेखक
का पदार्पण हो रहा है
तो आइये हम सब मिल कर उनका स्वागत करें......................

www.pkstiger.blogspot.com

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

धूल समझ के

धूल समझ के किसने उड़ा दिया मुझको |
में तो ठहरा था किसने जगा दिया मुझको||

बात इतनी सी मै जुबाँ से कैसे कहूँ |
तेरे ही जैसा था जिसने दगा दिया मुझको ||

मैंने पी थी बहुत मगर कभी नशे में न था |
तू ने आँखों से क्या पिला दिया मुझको ||

तेरे वस्ल की कीमत में उस समय समझा |
जब हाथ हिला के विदा किया मुझको ||

तेरा अहसान में समझूँ तो किस तरह समझूँ |
अपने ही रंग में हर रंग दिखा दिया मुझको ||

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

दिलजलों से दिल लगाना चाहिए

दिलजलों से दिल लगाना चाहिए |
गिर गया उसको उठाना चाहिए ||

इंसानियत का यही उसूल है |
वादा कर के निभाना चाहिए ||

टूटती हर मजहब की दीवार हो |
अमन का ऐसा जमाना चाहिए ||

नेक करने का इरादा जो बने |
अहम का रावण जलाना चाहिए ||

वक़्त निकले जो इबादत के लिए
दर्द सब का बंटाना चाहिए ||

दूटने की आहट न आह की आवाज हो |
दर्द को ऐसा दीवाना चाहिए ||

मंगलवार, 9 मार्च 2010

रूठना मनाना तो चलता .......................

रूठना मनाना तो चलता रहेगा |
तेरा दर्द-ए-दिल निकलता रहेगा ||

मिले है मिलेंगे दो दिल दीवाने |
जमाना यूँ ही हाथ मलता रहेगा ||

मेरा दिल दीवाना बन के तमन्ना |
तेरी बाजुओं में मचलता रहेगा ||

करोगे जो वादे निभा ना सकोगे |
बहनों में दम यूँ ही घुटता रहेगा ||

लगा के इन्सान चहरे पे चेहरे |
दुनियाँ को यूँ ही छलता रहेगा ||

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

अमन के अलम......................!

दिलों के जख्म यूँ गहरे हुए है |
वक्त-ए-मरहम भी ठहरे हुए है ||

अपनी तो गर्दिशों में उम्र गुजरी |
अमन के अलम अब फहरे हुए है ||

हुश्न की बिसात यूँ फैली हुई है |
कि अब कफ़न भी सेहरे हुए है ||

गुरवतें आँखों ने देखीं बहुत पर
यहाँ तो ज़र्द सब चेहरे हुए है |

बरस जायेंगे वो चलचित्र बनकर |
ख़्वाब आँखों में जो ठहरे हुए है ||

अभी तक दिल्लगी समझा जिसे था |
दाग दामन के अब गहरे हुए है ||

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

बहुत अनजान है राहें..................

बहुत अनजान है राहें मगर चलना जरुरी है |
इश्क में बंदिशे लाखों मगर मिलना जरुरी है ||

बड़े बे पीर है चाहत के किस्से और क्या कह दें |
प्यार का नाम जो भी हो मगर करना जरुरी है ||

रिश्तों का टूटना जुड़ना है वक्त के हाथों |
प्यार के लेप से दरारें मगर भरना जरुरी है ||

बात कहने से दिल को सुकूँ मिलता है लेकिन |
बात को कहने से पहले मगर सुनना जरुरी है ||

लाखों मिट गए चाहत के इस गुमनाम दरिया में |
वक्त के साथ इंसां को संभल जाना जरुरी है ||

"पुष्पेन्द्र"अकेला ही दुनियां बदल सकता है लेकिन |
काफिला साथ में यारो मगर होना जरुरी है ||

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2010

सरे राह

सरे राह चले हमको मिटाने वाले |
बड़े बेदर्द है तीर ज़माने वाले ||

यह जमाना है वक्त का कायल |
कहाँ मिलते है साथ निभाने वाले ||

हजारों उलझनों के बोझ तले |
मिट गए हंसने हंसाने वाले ||

सिलवटें चहरे पर ऑंखें भी नम है |
क्या है इरादा दिल को दुखाने वाले ||

हम तो सच-झूठ में उलझे रहे |
मंजिलें पा गए बात बनाने वाले |

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

बातों बातों में............

बातों बातों में बात बिगड़ जाती है |
शर्मिंदगी आखों से झलक जाती है ||

असलियत उनकी भी मुझे मालूम है |
गर कहता हूँ तो जुबान जल जाती है ||

साथ सूरज के कल सुकूँ उदय होगा |
इसी उम्मीद में रात गुजर जाती है ||

तुम खुद को यूँ गौर से देखा न करो |
नजर आइने की भी लग जाती है ||

तेरे बगैर भी हमने जी कर देखा है |
चंद लम्हों में जिंदगी सिमट जाती है ||

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

अपने दुश्मन को सीने से लगा ........

तेरी खुशबू को सांसों में बसा लेते है |
याद आती है तो सीने में दबा लेते है ||

वक़्त ए तन्हाई में खो न जाएँ कहीं |
तेरी यादों को रातों में जगा लेते है ||

कौन किसका इस तरह एतबार करे |
लोग हर मोड़ पर अपनों को दगा देते है ||

वो जो नदिया है बलखाती इठलाती हुई |
हम अपने दिल को समंदर बना लेते है ||

मुहब्बत से सीखा है दोस्ती का सबब |
अपने दुश्मन को सीने से लगा लेते है ||

खुदाया ऐसे शख्स का अहतराम करे |
किसी के वास्ते जो खुद को मिटा लेते है |

बुधवार, 27 जनवरी 2010

कली बागों में खिल नहीं पाती

कली बागों में खिल नहीं पाती |
गीत भंवरों का सुन नहीं पाती ||

सच अभी तक दिलों में जिंदा है |
जुबाँ कहने को खुल नहीं पाती ||

यही सजा है गाँव से बिछड़ने की |
नसीहत बुजुर्गों की मिल नहीं पाती ||

यही वजह है आपसी तकरार की |
बात बातों में मिल नहीं पाती ||

झूठ से दिल बहल जाता है लेकिन |
चालाकी देर तक चल नहीं पाती ||

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

वक्त के हाथों तकदीरें

वक्त के हाथों सोंपी जिसने तकदीरें |
बनती रोज़ बिगडती उनकी तकदीरें ||

सही फैसला कैसे इन्सान ले पाए |
दिल को जकड़े है जज्वात की जंजीरें ||

आँखों को हरदम धोते है अश्कों से |
फिर भी रह जाती है उनकी तस्वीरें ||

खुदा से कैसे खुद को इन्सां अलग करे |
जबीं पे लिखीं उसने अपनी तहरीरें ||

सच्चाई इतिहास बयाँ करता आया |
शोषण करने वाली मिट गयी जागीरें ||

मंगलवार, 19 जनवरी 2010

राज रिश्तों का

राज रिश्तों का अब खोला जाये |
दोस्त को दोस्त ही बोला जाये ||

जिंदगी तुझ को जीने के लिए |
टूटी उम्मीदों को टटोला जाए ||

कौन अपना है कौन बेगाना |
वक्त के तराजू पे तोला जाए ||

दिलों की दूरियां मिटाने के लिए |
सच तो सच झूठ भी बोला जाए ||

नजाकत हुश्न की भी समझलो |
फिर किसी का दिल टटोला जाए ||

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

अपनों से ही हमें शिकायत..

अपनों से ही हमें शिकायत होती है |
गैरों से तो सिर्फ सियासत होती है ||

जाने इंसा कैसे इतना बदल गया |
मिलने में भी आज किफ़ायत होती है ||

शाख-शाख पे अम्न-ओ-चैन के फूल खिलें |
आँखों की बस यही इनायत होती है ||

कब आते हो कब जाते हो पता नहीं |
इस दिल पे हर रोज़ क़यामत होती है ||

इश्क तो लैला मजनू,सींरी करते थे |
अब तो इश्क में सिर्फ तिजारत होती है ||

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

हाथों में फूल जेब में खंजर लिए मिले ......

हाथों में फूल जेब में खंजर लिए मिले !
जब भी मेरे दोस्त मुझसे गले मिले !!

अपने आप को दुनियां से छुपाता कैसे !
वक्त के दो हाथ आइना लिए मिले !!


पिछड़ने का डर बचपन पर हावी हुआ !
उम्र से पहले बड़प्पन लिए मिले !!

तोड़ कर बंदिश जो घर की आए थे !
आजतक वो आँख में आंशू लिए मिले !!


रिश्तों की बुनियाद ही सच्चाई अगर हो !
आंधियों में हर चराग जलता हुआ मिले !!


हर वक्त ये दुआ मांगी खुदा से थी !
जब भी कोई मिले हँसता हुआ मिले !!

किसे है वक्त पूछे हाल-ए-दिल किसका !
अपने अपने बारे में सब सोचते मिले !!

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