अपने ही जख्म छुपाने के लिए |
हमने छोड़ा शहर ज़माने के लिए ||
ये किस राह का में रह गुजर हूँ |
कोई पत्थर नहीं उठाने के लिए ||
भले ही लाखों जख्म खाए लेकिन |
दिल है तैयार लगाने के लिए ||
सभी है अपने में मशरूफ साकी |
तुम भी रूठे हो मानाने के लिए ||
यहाँ तो है सभी कातिल निगाहें |
नजर के तीर चलाने के लिए ||
15 टिप्पणियां:
waah...
bahut khub..
maza aa gaya....
बहुत सुन्दर गज़ल. बधाई.
बहुत सुन्दर!
Wah wah….khoobsoorat prastuti…!
अपने ही जख्म छुपाने के लिए |
हमने छोड़ा शहर ज़माने के लिए ||
बेहतरीन गज़ाल का लाजवाब शेर .... बहुत कमाल की बात लिखी है ...
वाह वाह चुप्पी टूटी......स्वागत है पिंटू ग़ज़लों के इस अखाड़े में....!
अच्छी ग़ज़ल लिखी है.....
मतला सुन्दर है....... ज़ख्म छुपाने के लिए शहर को छोड़ देने का भाव..... नया भी उम्दा भी
अपने ही जख्म छुपाने के लिए |
हमने छोड़ा शहर ज़माने के लिए ||
शायद टाइपिंग मिस्टेक है...जुजर की जगह गुज़र हून चाहिए...बाकि सब दुरुस्त.....!
ये किस राह का में रह जुजर हूँ |
कोई पत्थर नहीं उठाने के लिए ||
भले ही लाखों जख्म खाए लेकिन |
दिल है तैयार लगाने के लिए ||
(सबसे अच्छा शेर..... दाद देनी पड़ेगी )
इस शेर के तो क्या कहने.......!
यहाँ तो है सभी कातिल निगाहें |
नजर के तीर चलाने के लिए ||
बहुत बहुत प्यार.......! अब थोडा रेगुलर रहने की कोशिश करो......!
वाह! बहुत बढ़िया और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
Bahut sundar ghazal.
behad sunder gazal..... achhi rachna ke liye badhai
वाह भैय्या मज़ा आ गत्या.............
इतनी सुंदर रचना की दिल करता है की पड़े जाओ बस ......................
वैसे इस रचना मै मुझे ये लाइन बहुत पसंद आई.......
अपने ही जख्म छुपाने के लिए |
हमने छोड़ा शहर ज़माने के लिए ||
सोचने की शानदार झमता है आप में फिर इसे प्रस्तुत भी खूब कर देते हो आप ............
मै कोशिस कर रहा हूँ जब भी मौका मिले एक-दो गजल आपकी पढ़ लूं ............
आपका छोटा भाई श्याम कान्त ..............................
भाई पी सिंह जी
अच्छी ग़ज़ल लिखी है
ये किस राह का में रह गुजर हूं
कोई पत्थर नहीं उठाने के लिए
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ये किस राह का में रह गुजर हूँ |
कोई पत्थर नहीं उठाने के लिए
Behtariin rachna...
Neeraj
....अपने ही जख्म छुपाने के लिए |
हमने छोड़ा शहर ज़माने के लिए ||
सुन्दर प्रस्तुति...
आपको और आपके परिवार को नवरात्र की हार्दिक शुभ कामनाएं ,
भले ही लाखों जख्म खाए लेकिन |
दिल है तैयार लगाने के लिए ||
वाह ..वाह....बहुत खूब ......
चोट खायी है बहुत दिल ने फिर भी
दिल लगाने की कसम खाई है हमने
अपने ही जख्म छुपाने के लिए |
हमने छोड़ा शहर ज़माने के लिए
बेहतरीन गज़ाल का लाजवाब शेर
बधाई.
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