रविवार, 1 अगस्त 2010

सिलसिला

सिलसिला इश्क यूँ ही चलने दो |
लोग जलते है जलें जलने दो ||

लूट कर ले गए वो ख्वाब सभी |
बातों बातों में रात ढलने दो ||

फिर संभल जाएगी हर बहर अपनी |
उनके होठों की गजल बनने दो ||

दिल का मिलना तो दूजी बात है |
पहले हाथों से हाथ मिलने दो ||

(और यह शेर मैने अपने बड़े भइया परम आदर्णीय "पवन जी" के लिए लिखा है )

बस यही इल्तजा रही उनसे |
अपने पैरों की धूल बनने दो ||

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