गुरुवार, 24 जून 2010

फासले दरमियाँ................

वो हमें हम उन्हें पास लाते रहे
फासले दरमियाँ फिर भी आते रहे


वो गए छोड़ कर हम को ऐसे कहीं
रास्तों पर शमाँ हम जलाते रहे



कुछ हकीकत से अपना न था वास्ता
गीत ख्वाबों के हम गुन गुनाते रहे


अब तलक अपने दिल में अँधेरा रहा
ज्ञान की लौ सभी को दिखाते रहे

हर लहर के मुकद्दर में साहिल नहीं
हौसले टूट कर मुस्कराते रहे

लाख मंजिल तलाशी मगर हमसफ़र

लोग आते रहे लोग जाते रहे

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