सरे राह चले हमको मिटाने वाले |
बड़े बेदर्द है तीर ज़माने वाले ||
यह जमाना है वक्त का कायल |
कहाँ मिलते है साथ निभाने वाले ||
हजारों उलझनों के बोझ तले |
मिट गए हंसने हंसाने वाले ||
सिलवटें चहरे पर ऑंखें भी नम है |
क्या है इरादा दिल को दुखाने वाले ||
हम तो सच-झूठ में उलझे रहे |
मंजिलें पा गए बात बनाने वाले |
18 टिप्पणियां:
हजारों उलझनों के बोझ तले |
मिट गए हंसने हंसाने वाले ||
सच है आज भागदौड भरी ज़िन्दगी में उन्मुक्त ठहाके गायब से हो गये हैं. सुन्दर गज़ल.
हजारों उलझनों के बोझ तले |
मिट गए हंसने हंसाने वाले ||
sabhi to behatareen hain, badhaai.
हजारों उलझनों के बोझ तले |
मिट गए हंसने हंसाने वाले ||
हम तो सच-झूठ में उलझे रहे |
मंजिलें पा गए बात बनाने वाले |
इन दो शेरों में गजब की कशिश है..बड़ी सटीकता से वर्तमान की तेज रफ़्तार और कडवी सचाइयों भरी जिन्दगी को रेखांकित किया है...
bahut achha likha hai saab
हम तो सच-झूठ में उलझे रहे |
मंजिलें पा गए बात बनाने वाले |
दिलचस्प, अनुभवों की सांद्रता।
pushpendra bhai...
kaatil likhte ho aap...
bahut he badhiyaa
सिलवटें चहरे पर ऑंखें भी नम है
क्या है इरादा दिल को दुखाने वाले
bahut khoobsoorat....waah
हम तो सच-झूठ में उलझे रहे
मंजिलें पा गए बात बनाने वाले .........
वाह ..... बहुत खूबसूरत शेर .... ग़ज़ब की रवानगी है ग़ज़ल में ..... सुभान अल्ला .........
बहुत खूबसूरत शेर है।
यह जमाना है वक्त का कायल |
कहाँ मिलते है साथ निभाने वाले ||
हजारों उलझनों के बोझ तले |
मिट गए हंसने हंसाने वाले ||
वाह बहुत खूबसूरत गज़ल है हर एक शेर आखिरी शेर भी बहुत अच्छक़ लगा धन्यवाद
आज की हकीकत का दर्पण। अच्छा लगा।
वाह पुष्पेन्द्र भाई
जाती मशरूफियत की वजह से आपके ब्लॉग पर न आ सका...........
आज आया तो पढ़ डाला
वह क्या बात है//////////////////
यह जमाना है वक्त का कायल |
कहाँ मिलते है साथ निभाने वाले ||
सिलवटें चहरे पर ऑंखें भी नम है |
क्या है इरादा दिल को दुखाने वाले ||
बहुत उम्दा........
मान गए उस्ताद
दस पंक्तियों में पूरा जीवन जी दिया
यह जमाना है वक्त का कायल |
कहाँ मिलते है साथ निभाने वाले ||
वाकई वक्त के साथ इन्सान बदल जाता है कोई साथ नहीं
निभाता ...........
हम तो सच-झूठ में उलझे रहे |
मंजिलें पा गए बात बनाने वाले |
इस मिशरे के बारे में क्या कहूँ
बधाई .................
सिंह साहब
इस गजल के बारे में क्या कहूँ
दिल में जखम कर देती है आपकी कलम
जिसका मीठा दर्द कई दिनों तक रहता है
जब भी नेट खोलता हूँ सबसे पहले आपका
ब्लॉग पढता हूँ |
बधाई कुबूल करें
पी.सिंह जी
बहुत ही बेहतरीन गजल लिखी आपने
हर शेर मजेदार और
सच से रूबरू
आभार
हम तो सच-झूठ में उलझे रहे |
मंजिलें पा गए बात बनाने वाले|
बहुत उम्दा ग़ज़ल......वाह...
हम तो सच-झूठ में उलझे रहे |
मंजिलें पा गए बात बनाने वाले |
sundar
हम तो सच-झूठ में उलझे रहे |
मंजिलें पा गए बात बनाने वाले
aaj ke zamaane yahee sach hai
aapki ye baat dil ko lag gayee saab
its nice, very nice
एक टिप्पणी भेजें