बुधवार, 13 अप्रैल 2011

कहीं चन्दा कहीं.....

कहीं चन्दा कहीं तारे कही जुगनू चमकते है |
हजारों खुशबुएँ नाकाम है जब वो महकते है ||

कौन कहता इश्क में मंजिल नहीं मिलती |
मुहब्बत की कशिश से दोस्तों पत्थर पिघलते है ||

खुदाया बख्श दे ऐसी नियामत आज उनको |
हजारों फूल हों पैदा जहाँ पत्थर निकलते है ||

गैरों की छोड़ो बात हम अपनों की करते है
गर्दिश में जो हों तारे यहाँ चहरे बदलते है ||

ये कौन सी दुनिया में आ गये है हम |
अमन के फूल खिलते थे वहां शोले दहकते है ||

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