कहीं चन्दा कहीं तारे कही जुगनू चमकते है |
हजारों खुशबुएँ नाकाम है जब वो महकते है ||
कौन कहता इश्क में मंजिल नहीं मिलती |
मुहब्बत की कशिश से दोस्तों पत्थर पिघलते है ||
खुदाया बख्श दे ऐसी नियामत आज उनको |
हजारों फूल हों पैदा जहाँ पत्थर निकलते है ||
गैरों की छोड़ो बात हम अपनों की करते है
गर्दिश में जो हों तारे यहाँ चहरे बदलते है ||
ये कौन सी दुनिया में आ गये है हम |
अमन के फूल खिलते थे वहां शोले दहकते है ||