वस्ल का हिज्र से मुकाबला क्या है |
जिंदगी जीने का फलसफा क्या है ||
अक्सर पूंछता हूँ इन परिंदों से |
झगडती शरहदों का मसला क्या है ||
नब्ज़ है दबी सी दिल हैरान सा |
बेतरतीब इश्क़ का माज़रा क्या है ||
जिंदगी मैने तुझे देखा करीब से |
इस भरे जहाँ में अपना क्या है ||
तू रुकेगा या वक़्त के साथ जायेगा |
बता तेरा आखिरी फैसला क्या है ||
10 टिप्पणियां:
वस्ल का हिज्र से मुकाबला क्या है |
जिंदगी जीने का फलसफा क्या है ||
bahut khoob .....!!
अक्सर पूंछता हूँ इन परिंदों से |
झगडती शरहदों का मसला क्या है ||
वाह ...वाह ....!!
नब्ज़ है दबी सी दिल हैरान सा |
बेतरतीब इश्क़ का माज़रा क्या है ||
mazra तो आप ही bta sakte हैं .....!!
तू रुकेगा या वक़्त के साथ जायेगा |
बता तेरा आखिरी फैसला क्या है ||
waqt का साथ दें तो behtar है ......!!
singh sahab..ek acchi peshkash....
shukriya....
nice
सुन्दर ग़ज़ल पी सिंह जी
बहुत खूब कहा !
इस दुनियां में इन्सान का क्या है ......
जिंदगी मैने तुझे देखा करीब से |
इस भरे जहाँ में अपना क्या है ||
धन्यवाद..............
वाह वाह ..............
मस्त ग़ज़ल
नब्ज़ है दबी सी दिल हैरान सा |
बेतरतीब इश्क़ का माज़रा क्या है ||
शानदार शेर
बहुत बहुत धन्यवाद
... किस शेर की तारीफ़ की जाये, सारे के सारे बेहतरीन, फ़िर भी ये शेर कुछ अलग ही है :-
नब्ज़ है दबी सी दिल हैरान सा |
बेतरतीब इश्क़ का माज़रा क्या है ||
... बहुत खूब !!!!
पी सिंह साहब, आदाब
पूरी ग़ज़ल अच्छी है
ये शेर मुझे बहुत पसंद आया-
अक्सर पूंछता हूँ इन परिंदों से |
झगडती सरहदों का मसला क्या है.
अलबत्ता व्याकरण और वर्तनी पर ध्यान देने की ज़रूरत है
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
सुन्दर ग़ज़ल हर हर शेर उम्दा
बहुत ब्बहुत शुक्रिया
जिंदगी जीने का फलसफा क्या है..........?
wah .... kya kahna...
sukriya kubool kare sir
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