नज़र नज़र से नज़र नहीं आती |
बात आँखों से कही नहीं जाती ||
यही फैसला है भरी पंचायत का |
हर गुनाह की सजा दी नहीं जाती ||
छलकते थे कभी पैमाने जिन आँखों से |
अब एक बूंद नज़र नहीं आती ||
यही बावस्तगी है तो हिज्र ही अच्छा |
तेरे जाने से तेरी याद जो नहीं आती ||
ज़ख्म अपने है तो नुमाइश कैसी |
घर की बात बहार की नहीं जाती ||
20 टिप्पणियां:
उम्दा लिखा.....एक नजर चार काम....
! ! नजर उठी तो दुया बन गयी
नजर नीची हुयी तो हया बन गयी
नजर तिरछी हुयी तो अदा बन गयी
नजर उठ कर नीची गिरी तो कज़ा बन गयी ! !
ज़ख्म अपने है तो नुमाइश कैसी |
घर की बात बहार की नहीं जाती ||
bahut umda.
P singh ji,
yah sher bahut achchha laga.Badhai!!
छलकते थे कभी पैमाने जिन आँखों से |
अब एक बूंद नज़र नहीं आती ||
यही बावस्तगी है तो हिज्र ही अच्छा |
तेरे जाने से तेरी याद जो नहीं आती ||
क्या बात है छोटे उस्ताद....... ! धड़ाधड लिखते जा रहे हो पूरी लय और जज्बात के साथ!
वाह.. वाह सिंह साहब कमाल कर दिया
जोरदार गजल हर एक शेर लाजबाब पर ये शेर
बेहतरीन है
यही फैसला है भरी पंचायत का |
हर गुनाह की सजा दी नहीं जाती ||
इस बेहतरीन गजल का उम्दा शेर
ज़ख्म अपने है तो नुमाइश कैसी |
घर की बात बहार की नहीं जाती ||
बहुत-२ बधाइयाँ ....................
भाई !
अच्छे भाव ..
बहर और मांगने की जरूरत है ..
कहीं - कहीं ले टूट रही है .. सधी रहे तो और मजा आये ..
'' घर की बात बहार की नहीं जाती || '' में 'बहार' की जगह 'बाहर' कर
दें तो और अच्छा लगे .. यह विनम्र अनुरोध है , इससे ज्यादा कुछ नहीं ..
.......... बुरा मत मानियेगा ..
भाव अच्छे लगे आभार !!!
क्षमा चाहूँगा ..
टाइपिंग में 'ले' गलती से हो गया है , ' लय ' है मेरा आशय ..
यही फैसला है भरी पंचायत का |
हर गुनाह की सजा दी नहीं जाती ||
waah!
bahut khooob likha hai!
achchhee gazal hai.
बहुत खूब लाजबाब शेर
नज़र नज़र से नज़र नहीं आती |
बात आँखों से कही नहीं जाती ||
सच कहा है नजर को इस नजर से नहीं देखा जा सकता
बधाई स्वीकारें
छलकते थे कभी पैमाने जिन आँखों से
अब एक बूंद नज़र नहीं आती ...
वाह कमाल का शेर है ......... जिंदगी की हक़ीकत .......
नज़र नज़र से नज़र नहीं आती |
बात आँखों से कही नहीं जाती ||
Behad sundar rachana...harek pankti!
ज़ख्म अपने है तो नुमाइश कैसी |
घर की बात बहार की नहीं जाती ||
kamal ka sher hai huzur
shukriya kubool karen
गालिब ने सैकडो शेर और गज़ल लिखी होगी लेकिन चन्द शेरो ने ही गालिब को गालिब बनाया . उसी तरह यह कविता आपकी लिखी कवितओ मे अलग स्थान रखेगी
bahut acche vichar hee itanee sunder kavita ko janm de sakte hai bahut acchee lagee aapkee ye rachana Badhai
ज़ख्म अपने है तो नुमाइश कैसी |
घर की बात बहार की नहीं जाती ||
bahut hee sunder abhivyakti.
ज़ख्म अपने है तो नुमाइश कैसी |
घर की बात बहार की नहीं जाती ||
बहुत ही बेहतरीन रचना ।
काश, इस खूबसूरत गजल में बहर का भी निर्वाह हुआ होता! आपके विचारों-कंटेंट्स में काफी गहराई है लेकिन गजल तो अपने नियमों-कायदों की पाबन्द होती है. आप को आहत करने का मेरा इरादा कतई नहीं है, लेकिन बन्धु, आप में प्रतिभा है, केवल थोड़ा सीखने की आवश्यकता है, इस के लिए समय निकालें. साहित्य में जिन लोगों ने भी अपना स्थान बनाया है, उन्होंने भी सीखा है पूरी ज़िन्दगी सीखने में गुज़ारी है.
मेरी बातों को अन्यथा न लें. दरअसल किसी प्रतिभावान के सीखने में आलस पता नहीं क्यों सहन नहीं होता. गजल को छोड़ दें, तो कविता के सभी रूप छंद-शास्त्रीयता की डिमांड करते हैं. बिना इनके कविता, कविता नहीं होती. ब्लॉग पर तारीफें ज्यादा मिलती हैं लेकिन बन्धु, हर ब्लागर कविता के व्याकरण से वाकिफ तो नहीं होता. वहां तो भावों को देख कर प्रशंसा होती है. यदि साहित्य में कुछ करना है तो मेहनत करनी होगी. केवल ब्लॉग पर टाइम-पास करना हो तो ठीक है.
आप मेरे ब्लाग तक आये, प्रशंसा की, मैं आभारी हूँ. अफ़सोस है, मैं आपकी तरह पशंसा नहीं कर सका. यदि मेरी बातें पसंद न आयें तो क्षमा चाहूँगा. बड़ा होने नाते बताना मेरा धर्म था, आप भी छोटे का धर्म अपनाएं क्षमा प्रदान करें.
Bahut Ache sher .Badhai.
Great .Sundar Rachna.
बहुत बहुत शुक्रिया ,
यूँ ही ज्ञान बांटते चलिए ;अच्छे खयालात हैं ;
aur haan aapko apna samajh adeebon ki taraf se jo sujhav diye gaye hain un par zarur gaur karein .aapke ujjwal bhavishya ki kaamnaaon ke saath......haya
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