शनिवार, 26 दिसंबर 2009

आखिर ये मयखाने कब तक

इधर उधर की बातें कब तक|
आँखों से मुलाकाते कबतक ||

चुनलो कोई साथी तुम भी |
गैरों के अफसाने कब तक ||

उनसे बिछडे अरसा गुजरा |
आँखों के पैमाने कब तक ||

ढू ढो कोई जगह दूसरी |
आखिर ये मयखाने कब तक ||

कल की छोड़ो आज संभालो |
गुजरे हुए ज़माने कब तक ||

एक ही मालिक के सब बन्दे |
मजहब जाति घराने कब तक ||

16 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

जोरदार रचना ग़ज़ल शानदार शेर .........

ढू ढो कोई जगह दूसरी |
आखिर ये मयखाने कब तक ||

सच है हर व्यक्ति घूम फिर के मयखाने के पीछे ही पड़ा रहता है
बहुत गहराई है इया शेर में
बधाई कुबूल करें

Unknown ने कहा…

bahut hi sahi likha dost
kyonki mera bharat mahan.......

एक ही मालिक के सब बन्दे |
मजहब जाति घराने कब तक ||

bahut bahut abhar..............

my blog ने कहा…

उम्दा ग़ज़ल हर शेर बेहतरीन
सिंह साहब आप जो कहना कहते है वो स्पष्ट होता है ये मैंने कम लोगों में देखा है जैसे -
कल की छोड़ो आज संभालो |
गुजरे हुए ज़माने कब तक ||
बहुत बहुत बधाई

शबनम खान ने कहा…

Bohot khoob singh ji....
har ek shabd jaise kuch keh raha ho...
khaskar ye shabd dil ko chu gaye
उनसे बिछडे अरसा गुजरा |
आँखों के पैमाने कब तक ||
aise hi likhte rahiye........
shubhkamnaye........

Prem Farukhabadi ने कहा…

ढू ढो कोई जगह दूसरी |
आखिर ये मयखाने कब तक ||
bahut khoob. badhai!!

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

अच्छे अशआर देख कर अच्छा लग रहा है ..
......... सुन्दर ,,,

आशु ने कहा…

"उनसे बिछडे अरसा गुजरा |
आँखों के पैमाने कब तक ||

ढू ढो कोई जगह दूसरी |
आखिर ये मयखाने कब तक ||"

सही बात है कोई दूसरी जगह ढूंढनी ही पड़ेगी!

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है इस छोटे बहर पर. बधाई

आशु

Apanatva ने कहा…

ek accha sandesh detee nirasha se ubarane walee rachana .
nav varsh kee shubhkamnae !

निर्मला कपिला ने कहा…

एक ही मालिक के सब बन्दे |
मजहब जाति घराने कब तक ||
बहुत खूब लाजवाब गज़ल बधाई

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कल की छोड़ो आज संभालो |
गुजरे हुए ज़माने कब तक ||

लाजवाब ग़ज़ल का खूबसूरत शेर .......... मुकम्मल, सुभान अल्ला .........

Pawan Kumar ने कहा…

पुष्पेन्द्र क्या कहने
यूँ तो पूरी ग़ज़ल ही बेहतरीन बन पड़ी है मगर दो शेर तो लाज़बाब हैं...दोहराने का मन कर रहा है सो दोहरा रहा हूँ.......

एक ही मालिक के सब बन्दे |
मजहब जाति घराने कब तक

कल की छोड़ो आज संभालो |
गुजरे हुए ज़माने कब तक ||

जिंदाबाद!

VOICE OF MAINPURI ने कहा…

shandaar

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

एक ही मालिक के सब बन्दे |
मजहब जाति घराने कब तक
-इस शेर के माध्यम से अच्छा संदेश दिया है।

Unknown ने कहा…

बहतरीन ग़ज़ल कलम में धर आगयी है
मज़ा आगया बेहतरीन शेर २००९
एक ही मालिक के सब बन्दे |
मजहब जाति घराने कब तक ||
धन्यवाद ....................

Alpana Verma ने कहा…

कल की छोड़ो आज संभालो |
गुजरे हुए ज़माने कब तक ||

bahut hi sundar khyaal hain!
bahut khoob!

[abhi comment box theek hai..pahle yah page scroll nahin ho pa raha tha..]thnx

संजय भास्‍कर ने कहा…

उम्दा ग़ज़ल हर शेर बेहतरीन
सिंह साहब आप जो कहना कहते है वो स्पष्ट होता है ये मैंने कम लोगों में देखा है जैसे -
कल की छोड़ो आज संभालो |
गुजरे हुए ज़माने कब तक ||
बहुत बहुत बधाई

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