बुधवार, 18 नवंबर 2009

दर्द

दर्द कुछ इस कदर बढ़ने लगा है |
आब आँखों से जा मिलाने लगा है ||

चलेंगे साथ ये बंदिश नहीं थी |
हमसफ़र अल्फाज़ ये कहने लगा है ||

कहीं पत्थर कहीं फूल था शायद |
खार सीने मे जा चुभने लगा है ||

कोई बच्चा कही रोया है अभी |
दर्द पत्थर को भी होने लगा है ||

तुम भी इकलाख से तोबा करलो
खून इंसानियत का बहने लगा है

6 टिप्‍पणियां:

my blog ने कहा…

bahut accha hai psingh
ye hser gazab

कहीं पत्थर कहीं फूल था शायद |
खार सीने मे जा चुभने लगा है ||

Unknown ने कहा…

बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल पर ये शेर बहुत ही बढ़िया है लगे रहो
कोई बच्चा कही रोया है अभी |
दर्द पत्थर को भी होने लगा है ||

Unknown ने कहा…

mujhe to tumhare sabhee sher achhe lage
good yaar

Pawan Kumar ने कहा…

kya baat hai......lage raho mere bhai!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कहीं पत्थर कहीं फूल था शायद |
खार सीने मे जा चुभने लगा है ||

DARD KI KAMAAL ABHIVYAKTI HAI ....

Prem Farukhabadi ने कहा…

दर्द कुछ इस कदर बढ़ने लगा है |
आब आँखों से जा मिलाने लगा है ||

bahut behtar.

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