दर्द कुछ इस कदर बढ़ने लगा है |
आब आँखों से जा मिलाने लगा है ||
चलेंगे साथ ये बंदिश नहीं थी |
हमसफ़र अल्फाज़ ये कहने लगा है ||
कहीं पत्थर कहीं फूल था शायद |
खार सीने मे जा चुभने लगा है ||
कोई बच्चा कही रोया है अभी |
दर्द पत्थर को भी होने लगा है ||
तुम भी इकलाख से तोबा करलो
खून इंसानियत का बहने लगा है
6 टिप्पणियां:
bahut accha hai psingh
ye hser gazab
कहीं पत्थर कहीं फूल था शायद |
खार सीने मे जा चुभने लगा है ||
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल पर ये शेर बहुत ही बढ़िया है लगे रहो
कोई बच्चा कही रोया है अभी |
दर्द पत्थर को भी होने लगा है ||
mujhe to tumhare sabhee sher achhe lage
good yaar
kya baat hai......lage raho mere bhai!
कहीं पत्थर कहीं फूल था शायद |
खार सीने मे जा चुभने लगा है ||
DARD KI KAMAAL ABHIVYAKTI HAI ....
दर्द कुछ इस कदर बढ़ने लगा है |
आब आँखों से जा मिलाने लगा है ||
bahut behtar.
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