शनिवार, 7 नवंबर 2009

जख्म ए दिल दर्द

जख्म ए दिल दर्द कुछ एसे रहे |
जिनको खुदसे ही हम कहते रहे ||

तुमभी कहते हो बड़े खामोश हो |
बात सब आँखों से हम कहते रहे ||

हमने ढूंडा था जिसे ता उम्र तक |
वो तो मेरे घर में ही बैठे रहे ||

यूँ तो कल मै भी हंसा हूँ देर तक |
अश्क आँखों से मगर बहते रहे ||

खेर छोडो जाने दो ज़दो ज़ह्त |
ये भी इक इल्जाम हम सहते रहे ||

5 टिप्‍पणियां:

Pawan Kumar ने कहा…

bhai waah....

Unknown ने कहा…

बहुत अच्छा .............
यूँ तो कल मै भी हंसा हूँ देर तक |
अश्क आँखों से मगर बहते रहे ||
कमाल है

Unknown ने कहा…

बहुत अच्छा .............
यूँ तो कल मै भी हंसा हूँ देर तक |
अश्क आँखों से मगर बहते रहे ||
कमाल है

Unknown ने कहा…

It's gooooooooooooood
but make on -------- one

Abhishek Ojha ने कहा…

स्वागत है भाई ! लिखते रहिये. एक दो जगह वर्तनी का फेर है थोडा... धीरे-धीरे हिंदी में टाइप करने की आदत हो जायेगी :)

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