गुरुवार, 5 नवंबर 2009

जीने के लिए मै कुछ ख्वाब बुन रहा हूँ |
अहसास बुन रहा हू वही प्यास बुन रहा हूँ ||

न जाने कौन खीच दे प्यार की इस डोर को |
अतिहात बुन रहा हू फरियाद बुन रहा हूँ ||

आज फिर गुम सुम सी है शहर की अवो हवा |
आसुओं की ओट से तूफान बुन रहा हूँ ||

सन्नाटो की गूंज में गुम है कही आवाजे |
भोर के एक गीत का में साज़ बुन रहा हूँ ||

गुम ना हों वादे वफ़ा इस भीड़ में |
अतीत के तिनकों से पहचान बुन रहा हूँ ||

5 टिप्‍पणियां:

Pawan Kumar ने कहा…

wah...........wah....... bahut khoob!

Unknown ने कहा…

kya bat hai dost..........
i wating for next

Santosh ने कहा…

Gud ..

my blog ने कहा…

kya khub kaha
गुम ना हों वादे वफ़ा इस भीड़ में |
अतीत के तिनकों से पहचान बुन रहा हूँ ||
maza agya

Santosh ने कहा…

Waqt he to sub karwata hai..
very pratical view and nice and keep it up!!

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