वक्त के हाथों सोंपी जिसने तकदीरें |
बनती रोज़ बिगडती उनकी तकदीरें ||
सही फैसला कैसे इन्सान ले पाए |
दिल को जकड़े है जज्वात की जंजीरें ||
आँखों को हरदम धोते है अश्कों से |
फिर भी रह जाती है उनकी तस्वीरें ||
खुदा से कैसे खुद को इन्सां अलग करे |
जबीं पे लिखीं उसने अपनी तहरीरें ||
सच्चाई इतिहास बयाँ करता आया |
शोषण करने वाली मिट गयी जागीरें ||
22 टिप्पणियां:
सही फैसला कैसे इन्सान ले पाए |
दिल को जकड़े है जज्वात की जंजीरें ||
कितना सही कहा है हम अपना अच्छा बुरा जानते हुए भी सही फैसला नहीं ले पते अक्सर
सच्ची रचना
वक्त के हाथों सोंपी जिसने तकदीरें |
बनती रोज़ बिगडती उनकी तकदीरें ||
बहुत सुन्दर.
sundar rachna.
आँखों को हरदम धोते है अश्कों से |
फिर भी रह जाती है उनकी तस्वीरें ||
yah umda she'r he.
क्या बात है आंखों को आंसुओं से निरन्तर धोते रहते है किन्तु उनकी तस्बीर फिर भी आंखों मे बसी रह जाती है
very nice pushpendra ji....
ek aur good compopsition...
behtreen rachna....
अच्छी एवं सच्ची रचना।
behatareen.
सही फैसला कैसे इन्सान ले पाए |
दिल को जकड़े है जज्वात की जंजीरें ||
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ है. इस रचना के लिए बधाई.
लम्बी है सही फैसला कैसे इन्सान ले पाए |
दिल को जकड़े है जज्वात की जंजीरें ||
आँखों को हरदम धोते है अश्कों से |
फिर भी रह जाती है उनकी तस्वीरें ||
अच्छे शेर लिख डाले भाई पुष्पेन्द्र........बहुत ही प्यारे शेर कहे है तुमने....
अच्छे मिस्रे और कुछ सशक्त भाव लिये हुए है ये रचना। तनिक और मेहनत माँगती हैं ये पुष्पेन्द्र जी अगर इसे ग़ज़ल की संज्ञा देनी है तो...
bahut achchi kavita lagi...........
सच्चाई इतिहास बयाँ करता आया |
शोषण करने वाली मिट गयी जागीरें |
अच्छे भाव लिए रचना....गौतम जी ने सही इशारा किया है...इतने सशक्त भावों को थोड़ी मेहनत और देंगे तो खूबसूरत गजल बन जाएगी...
umdaaaaaaa
Bindas..
आँखों को हरदम धोते है अश्कों से |
फिर भी रह जाती है उनकी तस्वीरें ||
bahut achcha sher
bhaav bahut pasand aaye
आँखों को हरदम धोते है अश्कों से
फिर भी रह जाती है उनकी तस्वीरें .....
वाह ...... लाजवाब है ये शेर ......... कमाल की ताज़गी है ...... मज़ा आ गया साहब .......
वक्त के हाथों सोंपी जिसने तकदीरें |
बनती रोज़ बिगडती उनकी तकदीरें ||
achchhaa likhate hain aap. badhaayee
आपकी मुहब्बत और इनायत के लिए शुक्रगुज़ार हूँ. थोडा आलसी हूँ, जल्दी -जल्दी पोस्ट नहीं कर पाता.
आप ने गजल लेबल वाली इस रचना के मतले में ऊपर-नीचे 'तकदीरें' का प्रयोग किया है. ऊपर तदबीरें कर लें. थोड़ी और मेहनत मांगती है गजल आपसे. हालाँकि इधर आप की गजलों में काफी विकास देखने में आया है. बस, थोडा सा प्रयास और...फिर मंजिल आपकी.
आँखों को हरदम धोते है अश्कों से
फिर भी रह जाती है उनकी तस्वीरें ....waah !
Gantantr diwas kee anek shubhkamnayen!
बहुत सुन्दर रचना ! आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
सही फैसला कैसे इन्सान ले पाए |
दिल को जकड़े है जज्वात की जंजीरें ||
सच्चाई इतिहास बयाँ करता आया |
शोषण करने वाली मिट गयी जागीरें
p singh sahab,bahut achchhe sher hain ,sundar prastuti
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