जब भी लोग बड़े होते है |
ऊँचे उनके सर होते है ||
कितनी भी आवाज़ लगाओ |
शीशे के सब घर होते है ||
सच्चाई की कीमत है ये |
लोग जो अब बेघर होते है ||
खौफ जदा मंजर ही एसा |
आँखों में भी डर होते है ||
जिन्दा होकर मरे हुए है ||
वो जो किसी के भर होते है ||
कितनी भी आवाज़ लगाओ |शीशे के सब घर होते है ||सच्चाई की कीमत है ये |लोग जो अब बेघर होते है ||Wah!
remarkable post... i just love your writing.. ****** PANKAJ K. SINGH
कितनी भी आवाज़ लगाओ |शीशे के सब घर होते है ||बहुत खूब!!
बहुत सुन्दर खुबसूरत रचना। धन्यवाद।
जब भी लोग बड़े होते है |ऊँचे उनके सर होते है ||सच्चाई की कीमत है ये |लोग जो अब बेघर होते है ||lajawab ... Kamaal ke sher hain ... Sachai bayan ka rahe hai ...
sahi baat hai!!
this is really touching .......bahut khub.......
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7 टिप्पणियां:
कितनी भी आवाज़ लगाओ |
शीशे के सब घर होते है ||
सच्चाई की कीमत है ये |
लोग जो अब बेघर होते है ||
Wah!
remarkable post... i just love your writing..
****** PANKAJ K. SINGH
कितनी भी आवाज़ लगाओ |
शीशे के सब घर होते है ||
बहुत खूब!!
बहुत सुन्दर खुबसूरत रचना। धन्यवाद।
जब भी लोग बड़े होते है |
ऊँचे उनके सर होते है ||
सच्चाई की कीमत है ये |
लोग जो अब बेघर होते है ||
lajawab ... Kamaal ke sher hain ... Sachai bayan ka rahe hai ...
sahi baat hai!!
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