बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

जब भी लोग बड़े होते है

जब भी लोग बड़े होते है |

ऊँचे उनके सर होते है ||


कितनी भी आवाज़ लगाओ |

शीशे के सब घर होते है ||


सच्चाई की कीमत है ये |

लोग जो अब बेघर होते है ||


खौफ जदा मंजर ही एसा |

आँखों में भी डर होते है ||


जिन्दा होकर मरे हुए है ||

वो जो किसी के भर होते है ||

7 टिप्‍पणियां:

shama ने कहा…

कितनी भी आवाज़ लगाओ |

शीशे के सब घर होते है ||


सच्चाई की कीमत है ये |

लोग जो अब बेघर होते है ||
Wah!

pankaj ने कहा…

remarkable post... i just love your writing..
****** PANKAJ K. SINGH

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

कितनी भी आवाज़ लगाओ |

शीशे के सब घर होते है ||
बहुत खूब!!

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर खुबसूरत रचना। धन्यवाद।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जब भी लोग बड़े होते है |
ऊँचे उनके सर होते है ||

सच्चाई की कीमत है ये |
लोग जो अब बेघर होते है ||
lajawab ... Kamaal ke sher hain ... Sachai bayan ka rahe hai ...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

sahi baat hai!!

sunanda ने कहा…

this is really touching .......bahut khub.......

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