आइने खुद को दगा देते है |
हकीकत चहरो की बता देते है ||
जरा सा प्यार से पूछा किसी ने |
रास्ता अपने घर का बता देते है ||
जुल्म जब हद से गुजर जाता है |
अपने भी हाथ उठा देते है ||
शर्द मौसम में शाम ढलते ही |
दरवाजे दिल के लगा देते है ||
घर से निकले थे इबादत के लिए |
किसी रोते को हंसा देते है ||
चलो कुछ हट के कोई बात करें |
आग दुनियां को लगा देते है ||
10 टिप्पणियां:
लाजवाब प्रस्तुति ....अतिउत्तम
सुन्दर विचार!
जरा सा प्यार से पूछा किसी ने |
रास्ता अपने घर का बता देते है ||
घर से निकले थे इबादत के लिए |
किसी रोते को हंसा देते है ||
चलो कुछ हट के कोई बात करें |
आग दुनियां को लगा देते है ||
bahut hi khoobsurat
बहुत सुन्दर लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! शानदार प्रस्तुती!
आइने खुद को दगा देते है |
हकीकत चहरो की बता देते है ||
Umda Panktiya..... Khoob Kaha..
अब बात बनी...... लगातार लिखने का सिलसिला बनाये रखो...
पिछली ग़ज़ल लाजवाब थी... यह उससे दो कदम आगे की ग़ज़ल है....
आइने खुद को दगा देते है |
हकीकत चहरो की बता देते है ||
बहुत सुन्दर बिम्व तैयार किया प्यारे.....!!!!
घर से निकले थे इबादत के लिए |
किसी रोते को हंसा देते है ||
निदा साहब का शेर याद आ गया... " घर से मस्जिद है बहुत दूर चलोयूँ कर ले, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये.." बहुत खूब!!!!
चलो कुछ हट के कोई बात करें |
आग दुनियां को लगा देते है ||
अच्छा शेर ....
इस शानदार अभिव्यक्ति पर पूरे नंबर....!
चलो कुछ हट के कोई बात करें |
आग दुनियां को लगा देते है ||
हर शेर लाजबाब है और बहुत गहरे अर्थ लिए हुए है ....आपका आभार
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
wah..singh sahab wah
kamal karte ho ap bhi
bahut sundar gazal janab
बस एक लफ्ज़: खूबसूरत!
आशीष
--
मैंगो शेक!!!
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