कहते कहते बात अपनी कह गए |
हम अकेले थे अकेले रह गये ||
चुपके चुपके आइनों की बात सुन |
सिसकियाँ लेते वो आंसू बह गए ||
यादों की बारात अपने साथ थी |
भीड़ में होकर भी तन्हा रह गये ||
टूटते है कैसे लोग दुनियां में |
ठोकरें खाते किनारे कह गए ||
दिल से दिल मिलना तो गुजरी बात है |
हाथ हाथों से मिलाते रह गए ||
18 टिप्पणियां:
टूटते है कैसे लोग दुनियां में |
ठोकरें खाते किनारे कह गए ||
बहुत सुन्दर गज़ल. ये शेर तो खासतौर पर मुझे बहुत पसन्द आया.
इस ग़ज़ल को पढ़ कर मैं वाह-वाह कर उठा।
बहुत खूब सिंह साहब, लगे रहिये !
दिली दाद कबूल करें
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
aiase kaise akele chhodenge...
aapke saath hain...kamaal ki rachna hai....
पिंटू तुम्हारी इस बढ़िया ग़ज़ल को पढ़ कर निकाह फिल्म का एक गीत याद आ गया.....दिल के अरमाँ आसुओं में बह गए, हम वफ़ा करके भी तनहा रह गए !
ये शेर खूब पसंद आये......
यादों की बारात अपने साथ थी |
भीड़ में होकर भी तन्हा रह गये ||
वह मुकम्मल शेर...... दाद.
दिल से दिल मिलना तो गुजरी बात है |
हाथ हाथों से मिलाते रह गए ||
वाह वाह फिर से उतनी ही दाद.......!
maaf kijiyega thodi der ho gayi aane mein...
naukri ki talash mein bzy hoon aaj kal...
bahut hi khubsurat rachna hai aapki....
behtareen...
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mere blog par is baar
तुम कहाँ हो ? ? ?
jaroor aayein...
tippani ka intzaar rahega...
http://i555.blogspot.com/
टूटते है कैसे लोग दुनियां में |
ठोकरें खाते किनारे कह गए ||
bahut hi badhiyaa
दिल मिलाने की चाह में हम
हाथ हाथों से मिलते रह गए.
बहुत अच्छा .बधाई!
बहुत ख़ूब .बधाई!
bahut sunder kavita.
चुपके चुपके आइनों की बात सुन |
सिसकियाँ लेते वो आंसू बह गए ||
Bahut achee,, awesome
bhai p.singh ji,
vande!
aapke blog par aaj pehli bar aaya hun.aapki rachnaon ka rasaswadan kar bahut aanand aaya.badhai achhe blog ke liye!aapki gazlon par bahut kuchh kehne-likhne ki tamnna hai lekin fir kabhi.filhal khoob likhne or aage badhne ke liye shubhkamnayen.
MERA NIVEDAN-
aap ye pustak jaroor padhen-
"URDU KAVITA OR CHHAND SHASTRA"
lekhak-NARESH NADEEM
saransh prakashan
142-E,poket-4,mayoor vihar faj-1 DILLI-110091 keemat-150/-
टूटते है कैसे लोग दुनियां में |
ठोकरें खाते किनारे कह गए ||
Yah panktiyan behtareen hain!
टूटते है कैसे लोग दुनियां में |
ठोकरें खाते किनारे कह गए ||
........sundar chitran..
Bhavpurn abhivyakti ke liye dhanyavaad...
बेहद उम्दा! एक कोशिश मेरी भी....
कल मुझे तन्हाई में भी भीड़ का अहसास था,
तुझसे मिला तो ऐ सनम भीड़ में भी तनहा हूँ मैं!
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
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