सोमवार, 5 मई 2014



भोर भई सब जाग उठे
निशा गयी प्रभात है आयी
कुत्तों ने भी ली अंगडायी
कलरव गूँज उठा चिड़ियों का
सूरज की खिडकी पर दस्तक
कोयल ने छेड़ी सहनाई
निशा गयी प्रभात है आयी

आंगन आंगन चहकीं चिड़ियाँ
बच्चे भी हर्षाये है
आने वाले आगंतुक की
कागा खबर ले आये है
दौड पड़ा हलधर खेतों को
नभ पर है ललामी छायी |
निशा गयी प्रभात है आयी

पनघट पर पनिहारिन देखो
शर्माती इठलाती सी
रात की  बात बताये है
कहना चाहे कहना पाए
मन ही मन मुस्काए है
हर गम रात में डूब गया है
सुबह हुई है सुखदाई
निशा गयी प्रभात है आयी

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