सोमवार, 5 मई 2014

कागा तुम कितने अच्छे हो



कागा तुम कितने अच्छे हो
सुबह सुबह तुम
जल्दी जग कर
कोयल के
बच्चों से मिलकर
आजाते हो मेरे
आंगन की मुंडेर पे
और बगैर किसी
आग्रह विनय के
सुनाने लगते हो
अपना मधुर गीत
रोटी के एक टुकड़े
के लालच में
वो टुकड़ा जो मेरी माँ
शाम के खाने से
अपने हिस्से की
रोटी में से बचा कर 
मेरे लिए रख लेती है
कभी तुम मेरे पास आकार
बैठ जाते हो और कभी
दूर उड़ जाते हो
और कभी जबरदस्ती
मुझसे रोटी छीनने लगते हो
में तुम्हे लकड़ी लेकर
हँसता हुआ दौडता हूँ
कागा तुम कितने सच्चे हो
कागा तुम कितने अच्छे हो |


भोर भई सब जाग उठे
निशा गयी प्रभात है आयी
कुत्तों ने भी ली अंगडायी
कलरव गूँज उठा चिड़ियों का
सूरज की खिडकी पर दस्तक
कोयल ने छेड़ी सहनाई
निशा गयी प्रभात है आयी

आंगन आंगन चहकीं चिड़ियाँ
बच्चे भी हर्षाये है
आने वाले आगंतुक की
कागा खबर ले आये है
दौड पड़ा हलधर खेतों को
नभ पर है ललामी छायी |
निशा गयी प्रभात है आयी

पनघट पर पनिहारिन देखो
शर्माती इठलाती सी
रात की  बात बताये है
कहना चाहे कहना पाए
मन ही मन मुस्काए है
हर गम रात में डूब गया है
सुबह हुई है सुखदाई
निशा गयी प्रभात है आयी


रात तू थम जा अगर
भोर की कोई आस न हो
रौशनी भी पास न हो
भाग हो न दौड हो
न आगे निकलने की होड हो
डूबते जाएँ स्वप्न में
नीद का पी कर जहर
रात तू थम जा अगर |

टिम टिमाते दूर तारे
आँखों से करते इशारे
चाँद जो चिलमन से झांके
और धरा से दूरी  नापे
उड़ते घुमड़ते बादलों पर
छाई ये कैसी लहर
रात तू थम जा अगर |

शांति है हर ओर छाई
फैली है काली श्याही
दूर चिंता के भंवर से
ओढ़ कर चादर को सर से
स्वप्न के सागर में डूबा
रात्रि का दूजा पहर
रात तू थम जा अगर |

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