सोमवार, 27 सितंबर 2010

हमने छोड़ा शहर ज़माने के लिए.......

अपने ही जख्म छुपाने के लिए |
हमने छोड़ा शहर ज़माने के लिए ||

ये किस राह का में रह गुजर हूँ |
कोई पत्थर नहीं उठाने के लिए ||

भले ही लाखों जख्म खाए लेकिन |
दिल है तैयार लगाने के लिए ||

सभी है अपने में मशरूफ साकी |
तुम भी रूठे हो मानाने के लिए ||

यहाँ तो है सभी कातिल निगाहें |
नजर के तीर चलाने के लिए ||

खोजें