फासले दरमियाँ फिर भी आते रहे
वो गए छोड़ कर हम को ऐसे कहीं
रास्तों पर शमाँ हम जलाते रहे
कुछ हकीकत से अपना न था वास्ता
गीत ख्वाबों के हम गुन गुनाते रहे
अब तलक अपने दिल में अँधेरा रहा
ज्ञान की लौ सभी को दिखाते रहे
हर लहर के मुकद्दर में साहिल नहीं
हौसले टूट कर मुस्कराते रहे
लाख मंजिल तलाशी मगर हमसफ़र
लोग आते रहे लोग जाते रहे
9 टिप्पणियां:
अब तक अपने ही दिल में अँधेरा रहा
ज्ञान की लौ सभी को दिखाते रहे ||
बहुत सुन्दर गज़ल है. बधाई.
बहुत सुन्दर|
लाख मंजिल तलाशी मगर हमसफ़र | लोग आते रहे लोग जाते रहे ||
Aksar aisa hi hota hai..
Still, life moves on..
अच्छा कथ्य ।
विश्वास ही नहीं हो पा रहा की ये ग़ज़ल तुमने लिखी है..... अशआर में जो कुछ होना चाहिए वो सब कुछ इस ग़ज़ल में है......ख्याल,रिदम, इमेजिनेसन, कहन.....वाह वाह क्या कहने .....! ग्रामर के हिसाब से चुस्त ग़ज़ल है ये,.....!
कुछ हकीकत से अपना न था वास्ता |
गीत ख्वाबों के हम गुन गुनाते रहे ||
वो हमें हम उन्हें पास लाते रहे ||
फासले दरमियाँ फिर भी आते रहे ||
अब तक अपने ही दिल में अँधेरा रहा
ज्ञान की लौ सभी को दिखाते रहे ||
हर लहर के मुकद्दर में साहिल नहीं |
हौसले टूट कर मुस्कराते रहे ||
अद्भुत.....जिंदाबाद !
****** बस इस शेर में कुछ खटका है सो फोन पर बताऊँगा.....
अब तक अपने ही दिल में अँधेरा रहा
ज्ञान की लौ सभी को दिखाते रहे ||
Wah Ustaad, maan gaye!
वो हमें हम उन्हें पास लाते रहे
फासले दरमियाँ फिर भी आते रहे
प्रयास होता रहे तो फांसले कम भी हो जाते हैं ....
बहुत खूबसूरत शेर है ...
वो हमें हम उन्हें पास लाते रहे
फासले दरमियाँ फिर भी आते रहे
बहुत अच्छी गज़ल है बधाई
वाह! क्या बात है! लाजवाब प्रस्तुती!
एक टिप्पणी भेजें