मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

प्रिय पाठकों

आप सभी रहनुमाओ के लिए संजीदगी के साथ पेश है ये नज़म उम्मीद है अप सभी को पसंद आयेगी |


कभी किसी रोज़ आकार देखो

मेरे उस कमरे का आलम

सारा सामान बिखरा पड़ा है

और कॉफ़ी का वो कप जो

तुम्हारे दुप्पटे के झोके से

गिर कर टूट गया था

आज भी उस में से सोंधी सोंधी

सी खुशबू आती है

उस किताब के पन्ने

जिस पर तुम्हारी मखमली उँगलियों

शरारत कर रहीं थी

उस दिन से बदले नहीं है

और तुमने जो खिड़की खोल कर

शर्द हवा को आमंत्रण दिया था

तुम्हारी जुल्फों से उलझती

अटखेलियाँ करती हुई वो हवा

आज भी आ रही है

वो ख़त जो तुम लौटा गए थे

उस रोज मुझे

उड़ कर मेरे जिस्म से

चिपक जाते है

और तुम्हारी मजबूरियों की

कहानी सुनाते है

जो तुम जाते वक्त नहीं कह सके थे

कभी किसी रोज़ आकार देखो

मै कितना तन्हा हूँ ............|

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

ऊँचे ओहदे दुनियां पीछे.....

ऊँचे ओहदे दुनियां पीछे |
ऑंखें मीचे आँखे मीचे ||

पैसे में है सारी ताकत ||

कौन है ऊपर कौन है नीचे ||

फर्क अमीरी और गरीबी |

एक चांदनी एक गलीचे ||

फूटी कौड़ी पास नहीं है |

जीवन काटा मुटठी भीचे ||

अपनी किस्मत में है बंजर |

तुम्हे मुबारक बाग बगीचे ||

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

जब भी लोग बड़े होते है

जब भी लोग बड़े होते है |

ऊँचे उनके सर होते है ||


कितनी भी आवाज़ लगाओ |

शीशे के सब घर होते है ||


सच्चाई की कीमत है ये |

लोग जो अब बेघर होते है ||


खौफ जदा मंजर ही एसा |

आँखों में भी डर होते है ||


जिन्दा होकर मरे हुए है ||

वो जो किसी के भर होते है ||

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