बुद्ध हँसते है मुस्कराते है |
पैदा होने की सजा पाते है ||
जिन्दा रहते तो समझे नहीं |
घर में तस्वीर अब सजाते है ||
देश को जकड़ा है भ्रष्टाचार ने |
गीत दौलत के गुनगुनते है ||
बड़ी मजबूर धरती माँ हमारी |
संसद में बोलियाँ लगाते है ||
भूख से दम तोड़ता इन्सान है |
अनाज गोदाम में सड़ाते है ||
यही इस देश का दुर्भग्य है |
झुके कंधे देश चलाते है ||
7 टिप्पणियां:
पसंद आया यह अंदाज़ ए बयान आपका. बहुत गहरी सोंच है
बुद्ध हँसते है मुस्कराते है |
पैदा होने की सजा पाते है ||
......वाह बहुत खूब..
क्या बात कही है.....!
देश को जकड़ा है भ्रष्टाचार ने |
गीत दौलत के गुनगुनते है ||
kyaa baat....
kyaa baat....
kyaa baat....
बड़ी मजबूर धरती माँ हमारी |
संसद में बोलियाँ लगाते है ||
Aaah! Aur kya kaha jaye!
सार्थक प्रस्तुति।
काफी दिनों बाद लिखा छोटे उस्ताद..... मगर जो लिखा वो बेहद सटीक और उम्दा है !!
मतले ने समां बंधा है....... और ये बात बुद्ध पर ही क्यों हम सब पर भी तो लागू होती है......
बुद्ध हँसते है मुस्कराते है |
पैदा होने की सजा पाते है ||
बहुत उम्दा
जिन्दा रहते तो समझे नहीं |
घर में तस्वीर अब सजाते है ||
ग़ज़ल के सरोकार को और ऊँचाइयों तक पहुँचाने में इस शेर का महत्त्वपूर्ण योगदान रहेगा......
भूख से दम तोड़ता इन्सान है |
अनाज गोदाम में सड़ाते है ||
यही इस देश का दुर्भग्य है |
झुके कंधे देश चलाते है ||
बहुत शानदार वाह वाह !!!!!!
यही इस देश का दुर्भाग्य है |
झुके कंधे देश चलाते है |
लाजवाब। सच्ची तस्वीर प्रस्तुत की आपने।
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