बुद्ध हँसते है मुस्कराते है |
पैदा होने की सजा पाते है ||
जिन्दा रहते तो समझे नहीं |
घर में तस्वीर अब सजाते है ||
देश को जकड़ा है भ्रष्टाचार ने |
गीत दौलत के गुनगुनते है ||
बड़ी मजबूर धरती माँ हमारी |
संसद में बोलियाँ लगाते है ||
भूख से दम तोड़ता इन्सान है |
अनाज गोदाम में सड़ाते है ||
यही इस देश का दुर्भग्य है |
झुके कंधे देश चलाते है ||