शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

राहों से कह दो...........................

कहीं जमीं तो कहीं आसमां देखा है |

किसी भी उम्र में दिल जवां देखा है ||


खींचो खून से सरहद की लकीरें |

दोनों तरफ अमन का कारवां देखा है ||


दिल को दुखा के सुकूँ नहीं मिलता |

छलकती आँखों को पशेमां देखा है ||


कैसा रिश्तों के टूटने का दौर आया है

बेचैन हर घर का बागबां देखा है ||


राहों से कह दो दरारें भरा करें |

खुदा को किस्मत पर महरवा देखा है ||

26 टिप्‍पणियां:

shama ने कहा…

कैसा रिश्तों के टूटने का दौर आया है

बेचैन हर घर का बागबां देखा है ||


राहों से कह दो दरारें भरा करें |

खुदा को किस्मत पर महरवा देखा है ||
Behad sundar panktiyan!

वीनस केसरी ने कहा…

बढ़िया भावाभिव्यक्ति है

कुछ शब्द गलत टाईप हुए है सही कर लें पढ़ने में अटकाव पैदा कर रहे हैं

जबां शायद जवां
शरहद शायद सरहद

पढवाने के लिए शुक्रिया

pankaj ने कहा…

well done,splendid work.jannab blessings for your endless writing.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

न खींचो खून से सरहद की लकीरें |
दोनों तरफ अमन का कारवां देखा है ||
सच कहा है .... इंसान तो बस रोटी चाहता है ... पर सियासत ऐसा नही करने देती ....

कैसा रिश्तों के टूटने का दौर आया है
बेचैन हर घर का बागबां देखा है
बहुत ग़ज़ब की बात कह दी है ... आज के दौर में प्यार मुहब्बत ख़त्म हो रही है ...

बहुत लाजवाब ग़ज़ल कही है ...

Pawan Kumar ने कहा…

प्रिय पुष्प.....
बहुत खूब लिखा............. तुमने
मगर शायद इस बार टाइपिंग मिस्टेक कुछ ज्यादा थी, लेकिन सही करने के बाद पढने में कुछ रवानगी बनी.....


न खींचो खून से सरहद की लकीरें |

दोनों तरफ अमन का कारवां देखा है ||


यह शेर खूब जँचा......

दिल को दुखा के सुकूँ नहीं मिलता |

छलकती आँखों को पशेमां देखा है ||


यह तो हासिल ग़ज़ल है.......सुभान अल्लाह.........!

Prem Farukhabadi ने कहा…

कैसा रिश्तों के टूटने का दौर आया है
बेचैन हर घर का बागबां देखा है ||

राहों से कह दो दरारें भरा करें |
खुदा को किस्मत पर महरवा देखा है ||
bahut achchha likha hai. Badhai!!

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

कित्ता सुन्दर लिखा है आपने..बधाई.

_________________________
'पाखी की दुनिया' में जरुर देखें-'पाखी की हैवलॉक द्वीप यात्रा' और हाँ आपके कमेंट के बिना तो मेरी यात्रा अधूरी ही कही जाएगी !!

dipayan ने कहा…

शानदार गज़ल । बधाई ।

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

kya baat hai ! behtareen andaz hai...

sandhyagupta ने कहा…

न खींचो खून से सरहद की लकीरें |
दोनों तरफ अमन का कारवां देखा है ||

Bahut khub likha hai.Badhai.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

कैसा रिश्तों के टूटने का दौर आया है
बेचैन हर घर का बागबां देखा है ||
Manna padega, Singh Saab!
Achook!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

न खींचो खून से सरहद की लकीरें |

दोनों तरफ अमन का कारवां देखा है ||

bahut khoob ....!!

कविता रावत ने कहा…

कैसा रिश्तों के टूटने का दौर आया है
बेचैन हर घर का बागबां देखा है ||
....Rishton ke bikhrav aur vartman haatat ki sundar prastuti ....

Alpana Verma ने कहा…

कैसा रिश्तों के टूटने का दौर आया है

बेचैन हर घर का बागबां देखा है ||

waah! bahut sundar sher hai.

bahut achchhee ghazal likhi hai.

Asha Joglekar ने कहा…

न खींचो खून से सरहद की लकीरें |
दोनों तरफ अमन का कारवां देखा है ||
बेहद खूबसूरती से गज़ल में ढाला है सचाई को ।

बेनामी ने कहा…

waah kya baat hai...
har ek gazal ne mann moh liya..
bahut khub...
http://i555.blogspot.com/

SINGHSADAN ने कहा…

एक लम्बा अरसा बिना लिखे गुजार दिया तुमने.....यह यथास्थिति क्यों......?
यह मौन ठीक नहीं.....!

Pawan Kumar ने कहा…

एक लम्बा अरसा बिना लिखे गुजार दिया तुमने.....यह यथास्थिति क्यों......?
यह मौन ठीक नहीं.....!

my blog ने कहा…

मजा अगया भाई जी
अगले का इंतजार पूरा करें

Unknown ने कहा…

सिंह साहब
लाजबाब ग़ज़ल
दिल को दुखा के सुकूँ नहीं मिलता |
छलकती आँखों को पशेमां देखा है ||

देर से आने के लिए माफ़ी चाहूँगा

Unknown ने कहा…

न खींचो खून से सरहद की लकीरें |
दोनों तरफ अमन का कारवां देखा है ||
behtarin
rachna
badhai

Unknown ने कहा…

न खींचो खून से सरहद की लकीरें |
दोनों तरफ अमन का कारवां देखा है ||
behtarin
rachna
badhai

मनोज कुमार ने कहा…

न खींचो खून से सरहद की लकीरें |
दोनों तरफ अमन का कारवां देखा है ||
बहुत खूब।

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

न खींचो खून से सरहद की लकीरें |

दोनों तरफ अमन का कारवां देखा है ||

schchi prastuti......

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

ShyamKant ने कहा…

वाह पिंटू भैय्या गजब लिखा मै खुस नसीब हूँ जो मुझे आप जैसा भाई मिला ...............
ये लाइन तो बहुत ही सुंदर बन पड़ी है.........
.कैसा रिश्तों के टूटने का दौर आया है
बेचैन हर घर का बागबां देखा है ||
क्या समझ है आपको रिश्तो की मै फिर आप से कहना चाहता हूँ ............
ये नजरिया जब हर घर को महका सकता है ......................
तो हम ये समझते क्यों नहीं हैं .................................................
क्या कुछ बातें तभी सामने आती हैं जब कहीं जाये क्या बिना कहें बात स्पस्ट नहीं हो सकती .............
आप लिखते रहिये मै क्या सभी आप के साथ हैं ..................
फिर मै तो दुःख और सुख दोनों में साथ देने वाला उभयचर प्राणी हूँ ..........
आपका छोटा भाई श्याम कान्त...........

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