कागा तुम कितने अच्छे हो 
सुबह सुबह तुम 
जल्दी जग कर 
कोयल के 
बच्चों से मिलकर 
आजाते हो मेरे 
आंगन की मुंडेर पे 
और बगैर किसी 
आग्रह विनय के 
सुनाने लगते हो 
अपना मधुर गीत 
रोटी के एक टुकड़े 
के लालच में
वो टुकड़ा जो मेरी माँ 
शाम के खाने से 
अपने हिस्से की 
रोटी में से बचा कर  
मेरे लिए रख लेती है 
कभी तुम मेरे पास आकार 
बैठ जाते हो और कभी 
दूर उड़ जाते हो 
और कभी जबरदस्ती 
मुझसे रोटी छीनने लगते हो 
में तुम्हे लकड़ी लेकर
हँसता हुआ दौडता हूँ 
कागा तुम कितने सच्चे हो 
कागा तुम कितने अच्छे हो |
