कली बागों में खिल नहीं पाती |
गीत भंवरों का सुन नहीं पाती ||
सच अभी तक दिलों में जिंदा है |
जुबाँ कहने को खुल नहीं पाती ||
यही सजा है गाँव से बिछड़ने की |
नसीहत बुजुर्गों की मिल नहीं पाती ||
यही वजह है आपसी तकरार की |
बात बातों में मिल नहीं पाती ||
झूठ से दिल बहल जाता है लेकिन |
चालाकी देर तक चल नहीं पाती ||
बुधवार, 27 जनवरी 2010
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
वक्त के हाथों तकदीरें
वक्त के हाथों सोंपी जिसने तकदीरें |
बनती रोज़ बिगडती उनकी तकदीरें ||
सही फैसला कैसे इन्सान ले पाए |
दिल को जकड़े है जज्वात की जंजीरें ||
आँखों को हरदम धोते है अश्कों से |
फिर भी रह जाती है उनकी तस्वीरें ||
खुदा से कैसे खुद को इन्सां अलग करे |
जबीं पे लिखीं उसने अपनी तहरीरें ||
सच्चाई इतिहास बयाँ करता आया |
शोषण करने वाली मिट गयी जागीरें ||
बनती रोज़ बिगडती उनकी तकदीरें ||
सही फैसला कैसे इन्सान ले पाए |
दिल को जकड़े है जज्वात की जंजीरें ||
आँखों को हरदम धोते है अश्कों से |
फिर भी रह जाती है उनकी तस्वीरें ||
खुदा से कैसे खुद को इन्सां अलग करे |
जबीं पे लिखीं उसने अपनी तहरीरें ||
सच्चाई इतिहास बयाँ करता आया |
शोषण करने वाली मिट गयी जागीरें ||
मंगलवार, 19 जनवरी 2010
राज रिश्तों का
राज रिश्तों का अब खोला जाये |
दोस्त को दोस्त ही बोला जाये ||
जिंदगी तुझ को जीने के लिए |
टूटी उम्मीदों को टटोला जाए ||
कौन अपना है कौन बेगाना |
वक्त के तराजू पे तोला जाए ||
दिलों की दूरियां मिटाने के लिए |
सच तो सच झूठ भी बोला जाए ||
नजाकत हुश्न की भी समझलो |
फिर किसी का दिल टटोला जाए ||
दोस्त को दोस्त ही बोला जाये ||
जिंदगी तुझ को जीने के लिए |
टूटी उम्मीदों को टटोला जाए ||
कौन अपना है कौन बेगाना |
वक्त के तराजू पे तोला जाए ||
दिलों की दूरियां मिटाने के लिए |
सच तो सच झूठ भी बोला जाए ||
नजाकत हुश्न की भी समझलो |
फिर किसी का दिल टटोला जाए ||
मंगलवार, 12 जनवरी 2010
अपनों से ही हमें शिकायत..
अपनों से ही हमें शिकायत होती है |
गैरों से तो सिर्फ सियासत होती है ||
जाने इंसा कैसे इतना बदल गया |
मिलने में भी आज किफ़ायत होती है ||
शाख-शाख पे अम्न-ओ-चैन के फूल खिलें |
आँखों की बस यही इनायत होती है ||
कब आते हो कब जाते हो पता नहीं |
इस दिल पे हर रोज़ क़यामत होती है ||
इश्क तो लैला मजनू,सींरी करते थे |
अब तो इश्क में सिर्फ तिजारत होती है ||
गैरों से तो सिर्फ सियासत होती है ||
जाने इंसा कैसे इतना बदल गया |
मिलने में भी आज किफ़ायत होती है ||
शाख-शाख पे अम्न-ओ-चैन के फूल खिलें |
आँखों की बस यही इनायत होती है ||
कब आते हो कब जाते हो पता नहीं |
इस दिल पे हर रोज़ क़यामत होती है ||
इश्क तो लैला मजनू,सींरी करते थे |
अब तो इश्क में सिर्फ तिजारत होती है ||
शुक्रवार, 8 जनवरी 2010
हाथों में फूल जेब में खंजर लिए मिले ......
हाथों में फूल जेब में खंजर लिए मिले !
जब भी मेरे दोस्त मुझसे गले मिले !!
अपने आप को दुनियां से छुपाता कैसे !
वक्त के दो हाथ आइना लिए मिले !!
पिछड़ने का डर बचपन पर हावी हुआ !
उम्र से पहले बड़प्पन लिए मिले !!
तोड़ कर बंदिश जो घर की आए थे !
आजतक वो आँख में आंशू लिए मिले !!
रिश्तों की बुनियाद ही सच्चाई अगर हो !
आंधियों में हर चराग जलता हुआ मिले !!
हर वक्त ये दुआ मांगी खुदा से थी !
जब भी कोई मिले हँसता हुआ मिले !!
किसे है वक्त पूछे हाल-ए-दिल किसका !
अपने अपने बारे में सब सोचते मिले !!
जब भी मेरे दोस्त मुझसे गले मिले !!
अपने आप को दुनियां से छुपाता कैसे !
वक्त के दो हाथ आइना लिए मिले !!
पिछड़ने का डर बचपन पर हावी हुआ !
उम्र से पहले बड़प्पन लिए मिले !!
तोड़ कर बंदिश जो घर की आए थे !
आजतक वो आँख में आंशू लिए मिले !!
रिश्तों की बुनियाद ही सच्चाई अगर हो !
आंधियों में हर चराग जलता हुआ मिले !!
हर वक्त ये दुआ मांगी खुदा से थी !
जब भी कोई मिले हँसता हुआ मिले !!
किसे है वक्त पूछे हाल-ए-दिल किसका !
अपने अपने बारे में सब सोचते मिले !!
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